मुम्ब्रा में कार्रवाई, दिवा में खामोशी क्यों?’ – रफीक कामदार के सवाल ने मचाया तहलका, वायरल वीडियो को मिले 6 लाख से अधिक व्यूज़


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मुम्ब्रा, ठाणे: मुम्ब्रा में हाल ही में हुई एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक बैठक उस समय चर्चा का केंद्र बन गई जब पत्रकार और समाजसेवी रफीक कामदार ने खुलेआम नगरसेवकों और अधिकारियों से तीखे सवाल पूछे। यह बैठक मुम्ब्रा प्रभाग समिति द्वारा आयोजित की गई थी, जिसमें डॉ. जितेंद्र आव्हाड, शमीम खान, अशरफ शानू पठान, सैयद सहित कई प्रमुख राजनीतिक नेता एवं नगरसेवक उपस्थित थे। लेकिन सबसे ज़्यादा सुर्ख़ियाँ बटोरी रफीक कामदार की निडरता और उनके सवालों ने।

‘अनंद पार्क’ पर चुप्पी और मुम्ब्रा में सख्ती – दोहरी नीति पर सवाल

बैठक के दौरान रफीक कामदार ने गुस्से में प्रशासन से पूछा कि मुम्ब्रा में हाईकोर्ट के आदेशों पर सख्ती से अमल हो रहा है, जहां नामचीन बिल्डरों के भवन ढहा दिए गए – जैसे बुमराह, नूर खतीब और तनवर कॉम्प्लेक्स – लेकिन दिवा में ‘अनंद पार्क’ जैसे मामलों पर प्रशासन एक ईंट तक नहीं हटा पाया। क्या यह दोहरी नीति नहीं है?

उनकी आवाज़ में जनता का दर्द झलक रहा था। उन्होंने अधिकारियों को सीधी चुनौती दी – “क्या हाईकोर्ट के आदेश केवल मुम्ब्रा के लिए हैं? दिवा में लागू क्यों नहीं?”

राजनीतिक प्रभाव और प्रशासन की निष्क्रियता पर भी उठे सवाल

कामदार ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ नगरसेवक और राजनेता प्रशासनिक कार्रवाई में बाधा डाल रहे हैं। जब मुम्ब्रा जैसे इलाकों में सख्ती दिखाई जाती है लेकिन दिवा में वही नियम निष्क्रिय हैं, तो यह कहीं न कहीं राजनीतिक दबाव और पक्षपात की ओर इशारा करता है।

उन्होंने विशेष रूप से जोशी साहब का उल्लेख करते हुए कहा कि वे मौके पर मौजूद थे, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई – “अगर मुम्ब्रा में कानून का पालन हो सकता है, तो दिवा में क्यों नहीं?”

वीडियो सोशल मीडिया पर हुआ वायरल – 5 लाख से अधिक व्यूज़

इस पूरी घटना का वीडियो कुछ ही घंटों में इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब पर वायरल हो गया। अब तक 5 लाख से अधिक लोग इसे देख चुके हैं और जनता ने रफीक कामदार की साहसी आवाज़ की सराहना की है। कई यूज़र्स ने कमेंट करते हुए लिखा कि “हमें ऐसे ही लोगों की ज़रूरत है जो सच बोलें और सवाल करें।”

बैठक में नेताओं की चुप्पी और जनता की उम्मीदें

बैठक में मौजूद नेताओं और अधिकारियों के चेहरों पर कामदार के सवालों के बाद सन्नाटा छा गया। कोई ठोस जवाब नहीं आया। लेकिन जनता की उम्मीदें ज़रूर जगी हैं। लोगों को लगा कि कोई है जो बेखौफ होकर सत्ता और व्यवस्था से सवाल पूछ सकता है

निष्कर्ष: अब जनता जवाब चाहती है

यह घटना न केवल मुम्ब्रा-दिवा के नागरिकों के लिए बल्कि पूरे ठाणे क्षेत्र के लिए एक संदेश है कि चुप्पी से बदलाव नहीं आता, आवाज़ उठानी पड़ती है। रफीक कामदार ने जो सवाल उठाए, वे केवल उनके नहीं हैं, वे हर उस नागरिक के हैं जो न्याय और समानता की उम्मीद करता है।

प्रशासन और नेताओं को अब यह सोचना होगा कि क्या वे वाकई जनता के सेवक हैं या सिर्फ राजनीतिक चेहरा?


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